مازندراني سرود
عيسي رستمي خليلي (فيروزجايي)
با سلام و عرض تشکر از سايت زيباي شما که ما را دور از مازندرانيم با خبر ها و مطالب زيباي خود، در حال و هواي ديار هميشه سبز و محروم مازندران قرار مي دهيد. مطلبي که براي شما مي فرستم سروده ي عيسي رستمي خليلي دانشجو سال دوم روانشناسي دانشگاه علامه طبا طبايي مي باشد. او که در دامن سر سبز و زيباي منطقه بند پي بابل بزرگ شده بود و آن روح لطيفش نتوانست در چهار ديواري سيماني خوابگاه و هواي دود آلود تهران تحمل کند و باعث شد تا عقده هاي دلش را به صورت اشعار مازندراني بيان کند.
______________________________________
سادُ بنايِ قديم اون دور و زمان قديمي ساد و بِنا ديگري بيه/ بدون قهر و کينه اي شادي و دلگرمي بيه/
بدون غَم و غِرصه اي دوران طِلايي بيه/ با رَسم و رُسوم ساده اي شور و محشر به پايي بيه/
اَتا مِْنزِلِ گوشه و کِنار وِشونِ سِرِ زندگي بيه/ چَل ر ِسي و کِرچالِ کار زنان سر گرمي بيه/
اسبْ پالونِ مِنزلِ کِنار وَچونِ اسباب بازي بيه/ جَل ِپشته و وَلْگ و واشار گوهون خِراکي بيه /
کَچه و کِتْرا و خِردِ خارْ سرويسِ غِذا خوري بيه/ چوبي کَلِّزِ دَسِه دار پار چهاي آب خوري بيه/
همه يِ چيزِ اون دوره تازه و طبيعي بيه/ چِکْ سَري نونِ تَشِ سَرْ نون هاي بربري بيه/
کِلوا نونِ لاقِلي سَر پيتزاي امروزي بيه/ کَتي و تِفايِ تَشِ سَر گوشتهاي يَخِچالي بيه/
کِنِسْ شيشِ بي شاخ و پَر سيخِ کباب خوري بيه/ خِشْکِ هيمه ي تَشِ بَلْ گاز خِراک پَزي بيه/
کِلِنِ اويِ تازه سَر صابون سَر شويي بيه /خِنِه هاي سَرْ لَدِ پَر خِنِه ، کَلْ به کَلي بيه/
مِتِکاي دَرون کِرْکِ پَرْ تشکِ ترکمني بيه/ چوبي چرتکه، ديکون سَر ماشينِ حسابي بيه/
خِشْکِ مَلِجِ تَشِ وَرْ بر قهاي خانگي بيه/ دار کاشِم و اِفرايِ پَر سيم هاي ظرف شويي بيه /
سورِ کِتِنِّ چِشْمه ي سَر ماشينِِ لباسشويي بيه/ شاب و وِجِب و گَز و زَر واحد هاي متري بيه/
تِلارِِ دور و گِردِ وَر طَلْم و کَتِلْ دَچي بيه/ قِرا اسب و غَزِلْ قاطر ماشين هاي باري بيه/
شير دار گويِ پر چرب و بَر وِشونِ دِلِخِشي بيه/ خالِکِ گوگ، پِه کِلِه وَر گوگ و آدم هه اي بيه/
رَسِنْ سَري گوشتي سَر وِشونِ جيف خَرجي بيه /مِلک و مال و مِرْسِ پَر ثِروت و دارايي بيه/
سِرخِ طِلايِ کِلي سَر اذان گوي صِوي بيه /خِشْ سَرِجونکا و وَنْگِ کَر ْ اِفْتِخار و سَر افرازي بيه/
يِلاق و پِرتاسِ کوي پَر سَفِر هاي داخلي بيه/ کاله زمين ويشه سَر زمينهاي آبي بيه/
شاهِ بينج هاي شِتال پَر برنج کشاورزي بيه /هَي و هوي نِفارِ سَر آفت رَمِنْدِگي بيه/
وِرْزايِ عَقِب ازّالِ پَر تيلر کشاورزي بيه/ رَونْ اسب و آرومِ قاطر کمباين خرمن کوبي بيه/
بينج و چَکو هوايِ سَر با باد ها جدايي بيه /کَمِلْ قج هم با ليفا سَر يکجا جمع آوري بيه/
با آدمهايِ شيرِ نَر کَمِلْ بَسته بندي بيه/ بينج کيسه ، اودَنْگِ سَر بار گيري و خالي بيه/
چَلِ سَنگ اويِ دَنْگِ سَر دستگاه شاليکوبي بيه/ لَيلي و اَميري بَخونِسِّن نشانه ي خوانندگي بيه/
کَتولي و نَجْما سر هِدائِن سِپيده جانِ امروزي بيه/ کَله وَنْگ و اويا هِدائِن اِرتباط بيسيمي بيه/
پوسِّ کِلا رويِ سَر دَيِّن نِشانِ مَردانگي بيه/ اِحترام والدين داشتِن اصول تر بيتي بيه/
بي چَمِ دارِ لو بوردِن کار خيلي عالي بيه /کَلْ کِشْتي و بِمْ بَپِّرِسِّن فيلمهاي شو و سي دي بيه/
جونِکايِ سَرِ بَهيتِن فيلم سينمايي بيه /خالِکْ وَرِيِ کا بَکِرْدِنْ برنامه کودکي بيه/
سگ لوء و تَشِ دي نِشان آبادي بيه/ قَران و هزار و شاهي واحد هاي پولي بيه /
داز و تور و چوبِ دستي سِلاح گالشي بيه /کِنِس و هَلي و خِرمِني ميوه هاي پاييزي بيه/
کِنِس تِرْشي و دِشو پَزي رسومات هر سالي بيه/ هَلي کِک و هَلي تِرشي سِرکه و يار مَسي بيه/
وَنوشه و زَردِ تِتي گلهاي بهاري بيه/ اَتا گِرِفْتاري شون زِمِسْتونِ سَرْدي بيه/
وَرْف و يَخ که ايمو بيرون گو چِرا نا دياري بيه/ جَلِ پِشْتِه و وَلْگ و واشون غذاي کُمِکي بيه/
با اين کار ها دَر اُون زَمون زِمِستونِ سِپِري بيه/ باز که اِمو فَصْلِ بِهار طبيعت ، تازه اي بيه/
کَلو و کِنِس و هَلي دار پُرْ اَز چَرْدِه و تِتي بيه/ گالِش دِلا بي قِرا ر که راهي کوهي بيه /
از خِشالي ناشته قِرار لب خِنّه خِشالي بيه/ يابورِ ها کِرده وِ بار سوي يِلاق راهي بيه/
بَنِّمْ دوئِه اسبِ اوسار که رسم گالِشي بيه/ سَر گالشْ سوارِ کار راهدار جِلويي بيه /
مِنْزِل که کِردِنه تِلار مِنْزِلِ يِک شَبي بيه/ نِصفه راه گيتِنه چاشْتِ بار غٍذاي مُوقَتي بيه/
مِنْ کِرْدِنه چَنْد تا تِلار مِسافت طولاني بيه/ با خَسِّه تَن شينه کِنار يِلاق که دياري بيه/
اتا بِلاي اُون دور و زَمون زِلزِله و گو ناخِشي بيه/ گل ختميم و گل گاوزوون دِواي مر يضي بيه /
اَلِرزي و تيرنگ زِوون سَبزي خوردني بيه/ کِلاب پَر و بِِزِ خامُ خون مِلِهِمِ بَسوتي بيه/
کِشت و جوله دَر اون زمون ابزار گودوشي بيه /دِمس په دَس اغوُز و نون هِمراه ساندويچي بيه/
بَتِجِ اسب گالِشون ماشين سواري بيه/ تِمام عُبور ومُرور وِشون با اسب يا پياده روي بيه/
کدخدايِ سِرِ دَر اون زَمون پاستگاه انتظامي بيه/ پَروَندۀ مالباخته گون تَفتيش و بازرسي بيه /
جِنايت هاي آدمون در اونجه بررسي بيه/ حکم جلب يا تنبيهِ شون از کد خدا جاري بيه/
جشن هاي عروسي وِشون هَمِشْ مسخره بازي بيه /دِسِر عروسي شون گوشت و کباب خوري بيه/
خَرِک چي کا دَر اون ميون اُور گهاي عروسي بيه/ عاروسْ ماشين نِماشون اسب هاي يِرقه اي بيه /
مِلّا خِنِه در اون زَمون محل تحصيلي بيه /قرآن سِواد اِمو بيرون مَدْرِک ليسانسي بيه /
زبان تِکَلُّـــــــــمِ شون يِکْسَره محلي بيه/ ما هاي فصل هاي وِشون ما هاي طبري بيه /
آهاي آدمهاي اين زمون اينا رسم قديمي بيه/ اسا که در اين دور و زمون عوض و ديگري بَيِّه/
زِندگانيِ آدمــــــــــــــون هَمِش که ماشيني بَيِّه/ ماشيني کِرْکِ نِسْبه جون مرغ هاي خانگي بَيِّه/
اسراييلي گويِ ناتِوُون جايِ گويِ معمولي بَيِّه/ تِرْشِ گوجه و بادمجون غِذاي همگي بَيِّه/
لوبيا و ماهيِ تُن وِ هَمْ يِه غذاي بَيِّه/ غِذاي مصنوعي مون بلاي همگي بَيِّه /
آهاي بِرار و خاخِرون رسم قديم عالي بيه /زِ صُلح و صِفا و دِلْخِشي جاي همه هم خالي بيه/
گالِشي و لَتار کَشي کار هميشگي بيه/ تِلِّم زني و گو دوشي نِشان برتري بيه /
کِتْرا و خِردا خار تاشي وِ شغلِ حِرْفه اي بيه/ وِشون تَن رَخت و لِباس پَشْکارِ گِسْبِنِ مي بيه/
کُمُدِ اسباب و اثاث صندقچهِ چوبي بيه/ چَرْمِ جِرِبِ لينگِ تِکْ کفش هاي قيمتي بيه/
پيدِ گِلِج و لَمه تَک وِ لحاف و قالي بيه/ شير نون و بِچا پِلا کَتِکْ صبحانۀ صِوايي بيه/
گالِشون قوت و غِذا روغن حِيواني بيه/ شير ونون و گِرْ ماسْ پِلا غِذايِ هميشگي بيه /
گالِشونِ مِنْزِلِ سَرْ دو و کَره بَشِنّي بيه/ وِشونِ تِلِمِسادِ سَر دويِ کيسه دياري بيه/
هيچ خبر هايي از پنير نَهيه صحبت از ماسِّ سَر و شير سَري بيه/ اِسا گالِشون رِ دو و کره آرزوي هميشگي بيه تقصير گالِشون هم نيه /روز گار همين جوري بيه تيرِ تمدن و تعصب جان پاک آدمي بيه.
عيسي رستمي خليلي (فيروزجايي)
فرستنده:عيسي اکبري
(akbari.isa@gmail.com)